Sunday, February 20, 2011

हमन है इश्क मस्ताना / कबीर


हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?


जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?


खलक सब नाम अनपे को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या ?


न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से,
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?


कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या ?

साधो ये मुरदों का गांव / कबीर - Saheb Kabir


साधो ये मुरदों का गांव


पीर मरे पैगम्बर मरिहैं


मरि हैं जिन्दा जोगी


राजा मरिहैं परजा मरिहै


मरिहैं बैद और रोगी


चंदा मरिहै सूरज मरिहै


मरिहैं धरणि आकासा


चौदां भुवन के चौधरी मरिहैं


इन्हूं की का आसा


नौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैं


मरि हैं सहज अठ्ठासी


तैंतीस कोट देवता मरि हैं


बड़ी काल की बाजी


नाम अनाम अनंत रहत है


दूजा तत्व न होइ


कहत कबीर सुनो भाई साधो


भटक मरो ना कोई

रे दिल गाफिल गफलत मत कर / कबीर - Saheb Kabir


रे दिल गाफिल गफलत मत कर,
एक दिना जम आवेगा ॥
सौदा करने या जग आया,
पूँजी लाया, मूल गॅंवाया,
प्रेमनगर का अन्त न पाया,
ज्यों आया त्यों जावेगा ॥ १॥
सुन मेरे साजन, सुन मेरे मीता,
या जीवन में क्या क्या कीता,
सिर पाहन का बोझा लीता,
आगे कौन छुडावेगा ॥ २॥
परलि पार तेरा मीता खडिया,
उस मिलने का ध्यान न धरिया,
टूटी नाव उपर जा बैठा,
गाफिल गोता खावेगा ॥ ३॥
दास कबीर कहै समुझाई,
अन्त समय तेरा कौन सहाई,
चला अकेला संग न कोई,
कीया अपना पावेगा ॥ ४॥

रहना नहिं देस बिराना है / कबीर - Saheb Kabir

रहना नहिं देस बिराना है।
यह संसार कागद की पुडिया, बूँद पडे गलि जाना है।
यह संसार काँटे की बाडी, उलझ पुलझ मरि जाना है॥
यह संसार झाड और झाँखर आग लगे बरि जाना है।
कहत 'कबीर सुनो भाई साधो, सतुगरु नाम ठिकाना है॥

मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया / कबीर - Saheb Kabir

मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया।

पांच तत की बनी चुनरिया

सोरह सौ बैद लाग किया।

यह चुनरी मेरे मैके ते आयी

ससुरे में मनवा खोय दिया।

मल मल धोये दाग न छूटे

ग्यान का साबुन लाये पिया।

कहत कबीर दाग तब छुटि है

जब साहब अपनाय लिया

बीत गये दिन भजन बिना रे / कबीर - Saheb Kabir


बीत गये दिन भजन बिना रे ।
भजन बिना रे, भजन बिना रे ॥
बाल अवस्था खेल गवांयो ।
जब यौवन तब मान घना रे ॥
लाहे कारण मूल गवाँयो ।
अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे ॥
कहत कबीर सुनो भई साधो ।
पार उतर गये संत जना रे ॥

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में / कबीर


मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
भला बुरा सब का सुनलीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥